क्या शास्त्र प्रक्षिप्त है ?

विष का सन्देह होने पर आप भोजन कर सकते हैं?

उदाहरणतः मैं आपके लिए गरमागरम छोले-भटूरे लाया, पर आपको सन्देह हुआ कि मैंने इसमें एक चुटकी साइनाइड मिलाया है। तो क्या आप उसे खाएँगे?

जहर तो एक चुटकी ही है, एक चुटकी भोजन निकाल दीजिये और खा लीजिये। ऐसा कर सकते हैं?

नहीं। क्योंकि भोजन में विष होने का सन्देह है, इसका अर्थ है कि आपके अनुसार सम्पूर्ण भोजन में विष है, किसी भी जगह से उठाकर खा लो, मरने की प्रबल संभावना है।

इसी प्रकार जब आप कहते हैं कि शास्त्र प्रक्षिप्त हैं, या आपको सन्देह है कि शास्त्र प्रक्षिप्त हैं, तो आप शास्त्र पढ़ते ही क्यों हैं, उनके आधार पर बात और कोई भी कर्म, पूजा-पाठ, व्रत आदि करते ही क्यों हैं? उसका तो कोई भी शब्द घातक होने की प्रबल संभावना है।

जिस प्रकार विषैले भोजन का प्रत्येक निवाला मारक है, उसी प्रकार मिलावटी शास्त्र का प्रत्येक शब्द घातक है।

जिस प्रकार विष के सन्देह पर एक निवाला भी नहीं खाते, इसी प्रकार शास्त्रों के प्रक्षिप्त होने के सन्देह होने पर किसी भी शास्त्र का एक अक्षर भी नहीं मानना चाहिए। वैसे भी किसी मंत्र, स्तोत्र आदि में एक मात्रा भी मनमाने ढंग से बदल देने पर पाठ या जप करने वाले कि दुर्गति हो जाती है।

इसलिए यदि आप प्रक्षिप्तवादी हैं, तो आपको वेद से लेकर हनुमान चालीसा तक समस्त शास्त्रों, ग्रंथों और रचनाओं को उसी प्रकार त्याग देना चाहिए जैसे विष के सन्देह पर भोजन को त्याग दिया जाता है। पूर्ण त्याग।

हाँ, यदि आप प्रक्षिप्त नहीं मानते हैं, तो आपका स्वागत है। यथाशक्ति शास्त्रानुसार स्वधर्म पालन कीजिये, धर्म का मण्डन और अशास्त्रीय लोगों की धुलाई कीजिये।

।। जय श्री राम ।।

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